गृहिणी
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वो स्त्री है
वो नारी है
पर कइयों के लिए
वो आज भी बेचारी है
वो हमारे लिए दर्द सहकर
देती हमे खुशियां उधारी है
जिन खुशियों में
उसने कभी ना मांगी
अपनी हिस्सेदारी है
जब खुश होती है
तो जी भर के रोती है
पर दर्द को अपने मे समेटे
वो हर रात सोती है
वो एक ऐसा सवाल है
जिसके जवाब में कोई किताब नही
पर वो एक ऐसी किताब है
जिसके अंदर हर सवाल का जवाब है
वो एक ऐसी लहर है
जिसकी कोई सीमा ना हो
वो चाहे तो सब पा ले
पर उसकी चाहत
एक ऐसा किनारा है
जो उसके परिवार से जुड़ा हो
उसे तोहफो का शौक नही
उसे बस अपनों का समय पाना है
पर ना जाने क्यो
उसके अपनों को
उसे समय छोड़ कर सब दिलाना है
उसने हमारे लिए लूटा दी
अपनी ज़िंदगी सारी है
पर क्या कभी
उसे मिली वो खुशियां हैं
जिनके इंतजार में
बैठी वो नारी है